Tuesday, June 25, 2019

अर्दोआन के लिए इस्तांबुल की हार इसलिए है बड़ा झटका

इस्तांबुल शहर में दोबारा हुए मेयर के चुनावों में तुर्की के राष्ट्रपति रैचप तैय्यप अर्दोआन की पार्टी एकेपी को तगड़ा झटका लगा है.
वोटों की गिनती लगभग पूरी हो चुकी है और मुख्य विपक्षी पार्टी के उम्मीदवार एक्रेम इमामोग्लू 7,75,000 वोटों से आगे हैं जबकि दो महीने पहले हुए चुनावों में वो महज 13,000 वोटों से आगे थे.
एकेपी ने मार्च में हुए चुनावों में अनियमितता की शिकायत की थी, जिसके बाद इस चुनाव को रद्द कर दिया गया था.
एकेपी का इस्तांबुल में पिछले 25 साल से शासन था. इसके उम्मीदवार पूर्व प्रधानमंत्री बिनाली यिल्दीरिम ने अपनी हार मान ली है.
ट्विटर पर राष्ट्रपति रैचप तैयप अर्दोआन ने लिखा है, "एक्रेम इमामोग्लू को मैं बधाई देता हूं, जिन्होंने चुनाव में जीत हासिल की है."
इससे पहले अर्दोआन ने कहा था कि "जो इस्तांबुल जीतेगा वही तुर्की जीतेगा". अर्दोआन 2003 से ही देश पर शासन कर रहे हैं. पहले प्रधानमंत्री के तौर पर अब राष्ट्रपति के रूप में.
इतने लंबे समय से देश पर शासन करने वाले अर्दोआन आधुनिक तुर्की गणराज्य की नींव रखने वाले मुस्तफ़ा कमाल पाशा यानी अतातुर्क के बाद सबसे ताक़तवर नेता हैं. लेकिन अब उन्हें चुनौती मिलने लगी है.
रिपब्लिकन पपुल्स पार्टी (सीएचपी) के एक्रेम इमामोग्लू ने जीत के बाद दिए अपने भाषण में कहा कि "ये शहर और देश दोनों के लिए एक नई शुरुआत है."
उन्होंने अर्दोआन के साथ मिलकर काम करने की इच्छा जताई, "राष्ट्रपति महोदय, मैं आपके साथ मिलकर शांतिपूर्ण माहौल में काम करना चाहता हूं."इन चुनावों में इमामोग्लू को 54% जबकि यिल्दीरिम को 45% वोट मिले.
वर्तमान में 49 साल के इमामोग्लू इस्तांबुल के ही एक ज़िले के मेयर हैं लेकिन मार्च में मेयर के पद के लिए हुए चुनाव से पहले उन्हें बहुत कम लोग जानते थे.
यिल्दीरिम, अर्दोआन की पार्टी एकेपी के संस्थापक सदस्यों में रहे हैं और 2016 से 2018 तक प्रधानमंत्री रहे लेकिन उसके बाद तुर्की में राष्ट्रपति प्रणाली लागू हो गई और प्रधानमंत्री पद समाप्त हो गया.
इसके बाद बीती फ़रवरी में नई संसद में उन्हें स्पीकर चुना गया. वो परिवहन और संचार मंत्रालयों की ज़िम्मेदारी भी निभा चुके हैं.
असल में मार्च में इमामोग्लू की 13,000 वोटों से जीत इतनी बड़ी जीत नहीं थी कि यिल्दीरिम अपनी हार स्वीकार करते.
सत्तारूढ़ पार्टी ने आरोप लगाया गया कि वोटों में धांधली हुई है और अधिकांश बैलट बॉक्स पर्यवेक्षकों को आधिकारिक मंजूरी नहीं दी गई थी.
इस आधार पर फिर से मतदान का फ़ैसला लिया गया. हालांकि आलोचकों का आरोप है कि दोबारा चुनाव का फ़ैसला राष्ट्रपति अर्दोआन के दबाव में लिया गया.
यह तुर्की का सबसे बड़ा शहर है, जिसकी आबादी डेढ़ करोड़ है जबकि पूरे देश की आबादी 8 करोड़ है. इस्तांबुल देश की आर्थिक रीढ़ भी है.
ये अर्दोआन के दिल के क़रीब भी है क्योंकि 25 साल पहले जब एकेपी सत्ता में आई तो अर्दोआन ने यहीं से मेयर का चुनाव लड़कर अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी.
वो यहां से 1994 से 1998 के बीच मेयर रहे. तुर्की के कुल जीडीपी का एक तिहाई इस्तांबुल से आता है. इसके महानगरीय निकाय का बजट लगभग चार अरब डॉलर है और यहां जीतने का मतलब है शहर के कई महत्वपूर्ण फ़ैसलों में सीधी भागीदारी.
इस चुनाव में इमामोग्लू ने महानगरीय निकाय में व्यापक भ्रष्टाचार और शहरी ग़रीबी को मुद्दा बनाया था.
इस्तांबुल की जीत के साथ ही अब विपक्ष का इज़्मीर और अंकारा में भी क़ब्ज़ा है.
तुर्की में बीबीसी के संवाददाता मार्क लोवेन के अनुसार, हाल के सालों में तुर्की के सबसे ताक़तवर नेता को उसके करियर का ये सबसे तगड़ा झटका मिला है.
नतीजे दिखाते हैं कि दोबारा चुनाव कराने के लिए उन्होंने अपनी ताक़त का इस्तेमाल किया जिससे लोगों की नाराज़गी बढ़ी.
इस हार का एकेपी पर असर पड़ेगा और हो सकता है उसमें फूट पड़ जाए और इस बात को हवा मिले कि अर्दोआन के बाद बागडोर किसके हाथ में जाएगी.
हालांकि उनके पास ये कहने का कारण है कि आने वाले कुछ सालों तक वो सत्ता में बने रहेंगे, क्योंकि 2023 से पहले देश में चुनाव नहीं होने जा रहा है.
कुछ लोगों का ये भी कहना है कि आम चुनाव समय से पहले भी हो सकते हैं. हालिया नतीजों से कुछ लोगों को लगता है कि ये भविष्य के नतीजों का संकेत है.

Monday, June 10, 2019

युवराज सिंह: बल्ले की 'दहाड़' से संन्यास के 'आंसुओं' तक

वराज सिंह ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास लेने की घोषणा की है. 2007 टी-20 वर्ल्ड कप और 2011 क्रिकेट वर्ल्ड कप में जीत के हीरो रहे युवराज सिंह ने मुंबई के साउथ होटल में एक प्रेस कॉन्फ्रेस में अपने संन्यास का ऐलान किया.
37 वर्षीय युवराज सिंह ने भारत के लिए अपना आखिरी वनडे मैच 30 जून 2017 को वेस्टइंडीज के ख़िलाफ़ खेला था.
युवी ने अपना आखिरी टी-20 मैच 1 फ़रवरी 2017 को इंग्लैंड के ख़िलाफ़ खेला. जबकि आखिरी टेस्ट मैच दिसंबर 2012 में इंग्लैंड के ही ख़िलाफ़ खेला था.
बीते दो सालों में युवराज सिंह ने भारत के लिए किसी भी फॉर्मेट में क्रिकेट नहीं खेला है.
अपने संन्यास की घोषणा करते हुए युवराज ने क्रिकेट के मैदान से जुड़ी अपनी यादों को ताज़ा किया.
क्रिकेट के मैदान में सबसे अनमोल तीन मैचों के बारे में युवराज में बताया.
युवराज ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में अपनी तीन सबसे बेहतरीन पारियों में, 2011 में विश्व कप जीतना, 2007 टी20 वर्ल्ड कप में इंग्लैंड के ख़िलाफ़ एक ओवर में लगाए गये छह छक्के और 2004 में लाहौर में बनाया अपना पहला टेस्ट शतक को बताया.

'कैंसर होना आसमान से ज़मीन पर गिरने जैसा'

संन्यास का ऐलान करते हुए भावुक युवराज ने कहा, "मैं बचपन से ही अपने पिता के नक्शेकदम पर चला और देश के लिए खेलने के उनके सपने का पीछा किया. मेरे फैन्स ने हमेशा मेरा समर्थन किया. मेरे लिए 2011 वर्ल्ड कप जीतना, मैन ऑफ़ द सिरीज़ मिलना सपने की तरह था. इसके बाद मुझे कैंसर हो गया. यह आसमान से ज़मीन पर आने जैसा था. उस वक्त मेरा परिवार, मेरे फैन्स मेरे साथ थे."
उन्होंने कहा, "एक क्रिकेटर के तौर पर सफ़र शुरू करते वक्त मैंने सोचा नहीं था कि कभी भारत के लिए खेलूंगा. लाहौर में 2004 में मैने पहला शतक लगाया था. टी-20 वर्ल्ड में 6 गेंदों में 6 छक्के लगाना भी यादगार था."
इस दौरान युवराज ने 2014 के टी20 वर्ल्ड कप फ़ाइनल में श्रीलंका के ख़िलाफ़ 21 गेंद में 11 रन बनाने को अपना सबसे ख़राब प्रदर्शन बताया.
उन्होंने कहा, "2014 में टी-20 फ़ाइनल मेरे जीवन का सबसे ख़राब मैच था. तब मैंने सोच लिया था कि मेरा क्रिकेट करियर ख़त्म हो गया है. तब मैं थोड़ा रुका और सोचा कि क्रिकेट खेलना शुरू क्यों किया था. फिर मैं वापस घरेलू क्रिकेट में गया और बहुत मेहनत की. फिर मैंने तीन साल बाद वनडे क्रिकेट में वापसी की क्योंकि मैंने कभी खुद में विश्वास करना नहीं छोड़ा."
2017 में युवराज सिंह ने क्रिकेट के मैदान में तीन साल के बाद वापसी की और अपने करियर की सबसे बड़ी पारी (150 रन) खेली.
युवराज ने कहा, "डेढ़ साल बाद मैंने टी-20 में वापसी की. इसके बाद ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ आखिरी ओवर में छक्का लगाया. 3 साल बाद मैंने वनडे में वापसी की. 2017 में कटक में मैंने 150 रन बनाए, जो मेरे करियर का सबसे बड़ा वनडे स्कोर है."
इस दौरान युवराज ने अपने माता-पिता और पत्नी के साथ-साथ क्रिकेट के मैदान से जुड़े कई लोगों को धन्यवाद दिया.
उन्होंने कहा, "मैंने सौरव गांगुली की कप्तानी में खेलना शुरू किया. फिर मैंने राहुल द्रविड़, जवगल श्रीनाथ जैसे क्रिकेटर्स के साथ खेला. आशीष नेहरा, भज्जी जैसे दोस्त मिले."
उन्होंने कहा, "मैंने हमेशा खुद पर भरोसा रखा. यह मायने नहीं रखता कि दुनिया क्या कहती है. मैंने सौरव की कप्तानी में करियर शुरू किया था. सचिन, राहुल, अनिल, श्रीनाथ जैसे लीजेंड के साथ खेला. जहीर, वीरू, गौतम, भज्जी जैसे मैच विनर्स के साथ खेला."
"महेंद्र सिंह धोनी जैसे कप्तान और गैरी कर्स्टन जैसे सबसे नायाब कोच के साथ मुझे खेलने का मौका मिला."
संन्यास के फैसले को लेकर पूछे गए सवाल पर युवराज ने कहा, "सफलता भी नहीं मिल रही थी और मौके भी नहीं मिल रहे थे. 2000 में करियर शुरू हुआ था और 19 साल हो गए थे. उलझन थी कि करियर कैसे ख़त्म करना है. सोचा कि पिछला टी-20 जो जीते हैं, उसके साथ ख़त्म करता तो अच्छा होता, लेकिन सब कुछ सोचा हुआ नहीं होता. जीवन में एक वक्त आता है कि वह तय कर लेता है कि अब जाना है."
उन्होंने कहा, "मेरे करियर का सबसे बड़ा लम्हा 2011 वर्ल्ड कप जीतना था. जब मैंने पहले मैच में ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ 84 रन बनाए थे, तब वह करियर का बड़ा मोड़ था. इसके बाद कई मैच में फेल हुआ, लेकिन बार-बार मौके मिले. मैंने कभी 10 हज़ार रन के बारे में नहीं सोचा था, लेकिन वर्ल्ड कप जीतना ख़ास था. मैन ऑफ़ द सिरीज़ रहना, 10 हज़ार रन बनाना, इससे ज़्यादा ख़ास वर्ल्ड कप जीतना था. यह केवल मेरा नहीं, बल्कि पूरी टीम का सपना था."
वनडे क्रिकेट में युवराज सिंह ने 304 मैचों में 36.56 की औसत से 14 शतक और 52 अर्धशतकों समेत 8701 रन बनाए और 111 विकेट चटकाये.
टी20 क्रिकेट में युवराज ने भारत के लिए 58 मैचों में आठ अर्धशतकों समेत 1177 रन बनाए. इस फॉर्मेट में युवी 136.38 की स्ट्राइक रेट से खेले.
युवराज को अपने करियर में केवल 40 टेस्ट खेलने का मौका मिला और इस दौरान उन्होंने 33.93 की औसत से 1900 रन बनाये.